Sunday, March 29, 2015

चंपारण की “मोतीझील का अस्तित्व” और हम

चंपारण को आन्दोलन के कारण ज्यादा जाना जाता है.गांधीजी के आने से पहले चंपारण को कोई नहीं जानता था क्योकि यह क्षेत्र नेपाल के बॉर्डर से सटे  साधनविहीन, अशिक्षित व् पिछडा,अंग्रेजो द्वारा शोषित था.गाँधी जी के चंपारण में आगमन से लोगों में एक अलग तरह का उर्जा का संचार हुआ, लोग अपने अधिकारों के लिए जगे जो प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन में चंपारण का एक अहम् भूमिका रही.आज गांधीजी के आगमन के 100 वर्ष पुडने वाले है लेकिन आज गाँधी टोपी एवं गाँधी नाम की महता ही सिर्फ लोगों के बीच में माएने रखता है.गांधीजी ने अकेले पुरे विश्व को अपने कर्म से हिला कर रख दिया था लेकिन आज गांधीवादियों की फ़ौज भी एक छोटी-सी समस्या को नहीं निबटा पाते है.चंपारण इसका जीता-जागता उदाहरण है.आज चंपारण में प्रतिभाओ की कमी नहीं लेकिन एक तरफ धरातल पे समस्यायें सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है. समस्यायों की इस विशाल कड़ी में मोतिहारी शहर के बीचों-बीच स्थित “मोतीझील की अस्तित्व” अपने जीर्णोद्धार हेतु बाँट जोह रही है.नेताओं व् -जनप्रतिनिधियों द्वारा बार-बार जीर्णोधार की उद्घोषणा कर और अमल नहीं कर जले पर नमक छिरकने का कम किया है.आखिर कब तक सहेगी चंपारण की जनता. आग जलना ही था और हुआ भी वही.आन्दोलन का एक माहौल बना जो फेसबुक के एक पोस्ट से जो अंसारुल हक़ ने अपने मोतीझील के दर्द को शेयर किया.अपने खुबशुरुत शब्दों से अपने फेसबुक दोस्तों के बीच चर्चा शुरू हुआ और “मोतीझील की अस्तित्व” हेतु लोग पहली बार ऑनलाइन से ऑफलाइन हांथ में मोमबती लेकर सडको पर उतरे.सडक पे क्या उतरे कि सबके दिल में एक जगह बना ली और शुरू हुआ आन्दोलन का दौर. देखते देखते “मोतीझील बचाओं अभियान समिति” का गठन हो गया और टी-शर्ट ,टोपियों ,वेबसाइट एवं फेसबुक अपडेट के साथ एक अभियान शुरू हो गया. शहर के बुद्धिजीवियों के साथ आज के नौजवानों ने कंधे से कंधे मिलकर चलने लगे और सरकार एवं प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए विबिन्न कार्यक्रमों का दौर शुरू हुआ.शहर के समाजसेवीयों,शिक्षको, छात्रो एवं बुद्धिजीवियों के साथ अनेक बार बैठक,मोमबती के साथ रैली, मसाल जुलुस, बाइक रैली, सेमिनार एवं श्रमदान के अलावे लगातार SMS ,ईमेल एवं फ़ोन द्वारा लोगों के बीच जागृति के साथ जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह से मुलाकात सामिल है. वही नगर परिषद्,मोतिहारी द्वारा भी पहली बार “मोतीझील महोत्सव” का आयोजन कर मोतीझील सँवारने का सकारात्मक पहल किया लेकिन अभी तक परिणाम निरर्थक रहा है.
     अपने अस्तित्व की बाँट जोह रही मोतीझील आंशु बहाने के अलावा क्या कर सकती है?मोतिहारी शहर के बीचों-बीच अवस्थित जहाँ से हजारों लोग रोजाना आते-जाते है जिसमे प्रशासनिक पदाधिकारी से लेकर राजनेता तक सामिल है लेकिन मोतीझील के आंशुयों पर किसी की भी नज़र नहीं जाती. धन्य है मोतीझील कि शहर के कुछ युवा एकजुट होकर इसके अस्तित्व हेतु आन्दोलन छेड़ चुके है. चाहे उनको आन्दोलन की जानकारी नहीं है लेकिन काम करना है ये जूनून सवार है और मोतीझील के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है. ये युवाओं की टोली ने शहर के सभी वर्गों एवं संस्थाओं को एक सूत्र में बांधकर मोतीझील के विकाश हेतु प्रयाश कर रहे है. इनका एक ही नारा है “सबका साथ,मोतीझील का विकाश”.अगर मोतीझील का विकाश होता है और अपने नवीनतम स्वरुप में बदलती है तो अंसारुल हक़ एवं इनके टीम सदस्यों को एक अहम् भूमिका को भूलना नहीं होगा.”मोतीझील बचाओं अभियान समिति” के अध्यक्ष अंसारुल हक़ है तो वही नौजवान व् उर्जावान महासचिव
अनिल कुमार वर्मा है.उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी शमशाद अली खां निभा रहे है तो वही कोषाध्यक्ष रजनीश कुमार एवं मकबूल आलम पुरे सिद्दत के साथ आगे बढ़ा रहे है.संरक्षक मंडल में डॉ.संजीव कुमार,डॉ.चंद्रसुभाष,डॉ.पीकेवर्मा,पत्रकार रफ़ी अहमद,डॉ.विवेक सामिल है तो वही प्रत्येक कार्यक्रम को सफलता तक पहुँचाने में सक्रिय सदस्य के रूप में विकास राज,अंकित दुबे,रंजित गिरी,दिवाकर सिंह,दीपक कुमार,आसुतोष कुमार,संतोष कुमार रौशन,भूषण कुमार,विवेक गौरव आदि सामिल है. इस अनुभव टीम ने वो अनुभव वाली कम कर डी जिसमे शहर के लगभग सामाजिक संगठन आगे आकार अपनी सहयोग दे रही है जिसमे सामिल है रोटरी क्लब मोतिहारी, लेक टाउन मोतिहारी,ख्वाब फाउंडेशन,चंपारण छात्र संघ,खेल संघ,युवा संगठन,विविन्न स्वास्थ्य संगठन,बलुआ व्यावसायिक संघ,प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन,जिला विविध संघ,सिख यूथ फेडरेशन,नीमा ,लायंस क्लब.


    अन्त में, गांधीजी की कर्मभूमि पर अगर उनके 100 वर्ष बीतने के बाद भी मोतीझील का जीर्णोधार हो जाता है तो यह एक बहुत बड़ी उपहार होगा.जब गाँधी जी अकेले चंपारण से सत्याग्रह की शुरुआत कर विदेशीयों को भगा सकते है तो क्या इतनी संस्था मिलकर मोतीझील का जीर्णोधार नहीं करा सकते है?