Sunday, October 31, 2010

वह जीवन ही क्या जिसमे कोई असंभव सपना न हो ?


ये जिंदगी कितने वर्ष के लिए है ,किसी को नहीं पता लेकिन फिर भी लोग इस कीमती जिंदगी को समझ नहीं पाते और ऐसे ही इस दुनिया से कुच कर जाते है . आदमी का जीवन भगवान की सबसे सुंदर कृति है. लेकिन आदमी ने इससे सबसे बुरा बना दिया है. भगवान जब भी उप्पर से अपनी इस सुंदर कृति को देखते होंगे तो उनको भी शर्म आती होगी की ये क्या हो गया? मैंने क्या बनाया था और ये क्या हो गया?
जहा तक मेरा मानना है, भगवान हरेक आदमी को एक विशेष गुण के साथ भेजा है जिसे उसे यहाँ करना होता है लेकिन वो अपने आपको पहचान नहीं पाता और दुसरो की देखा-देखि कुछ और करने की सोच लेता है। अब इस कथन को मै एक बहुत ही साधारण उदहारण से सिद्ध करने की कोशिश करता हूँ :- एक स्कूल में आप चले जाये और वहा उपस्थित विध्याधियों में से किसी एक से पूछे की तुम्हारा लक्ष्य क्या है ? क्या बोलेगा ये सबको पता है , या तो इंजिनियर , डॉक्टर ,पुलिश ,शिक्षक या जिलाधिकारी आदि बोल सकता है । ऐसा क्यों होता ?क्या वो इस्सी काम के लिए इस दुनिया में आया है, नहीं मेरे दोस्त ये तो सिर्फ अहम् है की मुझे ये बनाना है क्योकि अपने माता-पिता व् दोस्तों से सिर्फ येही बाते सुनी होती है ,इसलिए ये अक्स उसके दिमाग में बैठ गया होता है और अपना लक्ष्य इससे ही बता देता है।उसके माता-पिता की भी येही चाहते है की उसका बच्चा इनमे से ही कूछ बन जाये और पैसा कमा कर घर चलाये। बस हो गयी जिंदगी का काम और वो अपने आपको सफल मान बैठते है और येही प्रक्रिया आने वाले संतति आपनती है और ये दुनिया ऐसे ही चलती रहती है। लेकिन इससे हटकर एक और दुनिया है जहाँ अच्छे लोग को पंहुचा चाहिए वहां सिर्फ बदमाश, धोखेबाज,बेईमान व् धूर्त आदमी ही पहुच पता हैऔर वह लक्ष्य है अपने देश के बागडोर को संभालना मतलब नेता ,मिनिस्टर या प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनाना लेकिन कोई विद्यार्थी नहीं बोलता कि मुझे नेता बनना है या देश कि बागडोर को अपने हाथ में लेकर इसकी सेवा करना है। अपनी धरती माँ को इन भ्रष्ट नेताओं से छुटकारा दिलाना है। मै मानता हु कि वो इंजिनियर या डॉक्टर बनकर भी सेवा कर सकता है लेकिन ये नेता बिना किसी डिग्री के हमारे उप्पर शासन करते है और हमेशा देश को बेचने के फिराक में रहता है। आखिर ऐसा क्यों?
अब मै यह पूछना चाहूँगा कि
क्या उसे ऐसे ही जिंदगी को बिताने दिया जाये या हमसब बिताये?
क्या हमें एक ऐसा वातावरण पैदा नहीं कर सकते जहाँ हरेक को अपने असली शक्ति का अहसाश हो ?
क्या इन्हें देश को चलाने की हिम्मत नहीं है?
क्या ये इन बिना डिग्री वाले नेताओं से डरते है ?
ऐसे बहुत सारे सवाल है जो सुरसा की तरह मुहँ बाए खरी है। अब इन सारे सवालो का जवाब हां है तो मै अपना लिखना येही बंद कर दूंगा और आगे एक शब्द भी नहीं बोलूँगा नहीं तो मुझे भी ये नेता लोग युवा को भरकाने के जुर्म में जेल में बंद कर देंगे और हम कहा चले जायेंगे किसी को कुछ नहीं पता चलेगा। इशलिये मुझे माफ़ किगियेगा और इससे येही पढ़कर भूल जायेगा। और अगर हिम्मत है तो इसके जबाब को हाँ में करके दिखाए मै हमेशा आपके साथ मिलूँगा।
"सपने वो नहीं जो सोने के बाद दिखाई दे,
सपने तो वो है जो सोने नहीं दे."
जय हिंद, जय भारत

Friday, October 29, 2010

18 वर्ष के बूढों से मिले औए अपने आपके को देखे......!!!!!!!!!!


अपने देश को आजाद हुए ६० साल से ज्याद हो गए लेकिन अभी भी हमसब असली आजादी को नहीं पा सके है। असली आजादी कहने का मतलब है कि हर तरफ ख़ुशी और शांति का माहौल हो लेकिन ये तो जैसे सपना बनते जा रहा है। लोग शांति व् ख़ुशी के लिए तरश रहे है ,लेकिन वो नहीं जानते कि वो वो वैसे देश में रह रहे है जहाँ युवा लोग मरे हुए है। उनको अपने से फुरशत नहीं है तो वो देश के बारे में और देशवाले के बारे में क्या सोचेंगे ? उनको तो प्यार मोहब्बत करने व् मशकरी करने , शराब .गुटका,सिगरेट,तम्बाकू व् अन्य नशीली चीजो को खाने से छुट्टी मिले तब न । ये तो ऐसे सो गए है कि इनको और किसी चीज से कोई मतलब ही नहीं है। मै अपने शब्दों में कहूँगा कि ये सारे युवां १८ वर्ष के बूढ़े लोग है।

अब मै अपने इस कथन को इसलिए कह रहा हूँ कि जैसे बूढ़े के जिंदगी में कोई मकसद नहीं रह जाता और ऐसे लोग अक्सर हतोत्साह व् थके-हारे सा होते है , इनके आँखों पे चश्मा व् मुहँ में बीड़ी या तम्बाकू देखा जा सकता है, इनके बॉडी झुके हुए से होते है और जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐसे लोग दुसरे पर निर्भर रहते है। ऐसे लोग समाज व् देश के बारे में आपस में खूब चर्चा करेंगे लेकिन थके-हारे होने से ये कुछ कर नहीं पाते ,इसलिए तो ये बूढ़े कहलाते है । अब मै पूछता हु कि :-

ये गुण क्या हमारे भारतीय युवा में देखने को नहीं मिलता ?

क्या इनके पास अपने देश के बारे में कोई खाश मकसद रह गया है?

क्या ये अपने जिंदगी को बिताने के लिए दुसरो पे निर्भर नहीं है?

ऐसे बहुत बहुत सारे बूढों का गुण हमारे इन नवजवानों में कूट कूट कर भरा है तो क्या हम इन्हें १८ साल का ........... नहीं कह सकते। अगर किसी को इस बात पर शक है तो बताये ,तो मै येही पूछूँगा कि आज़ादी के बाद भी हम अपने देश को विकशित राष्ट्र क्यों नहीं बना पाए? क्या इसका दोष इन युवावों को नहीं दिया जा सकता ?

हमारे देश में लगभग ५६ करोड़ से भी अधिक युवा है लेकिन अधिकतर जवानी में ही बूढ़े हो चुके है तो फिर हमारा देश कैसे विकशित राष्ट्र बन सकता है । अभी सबसे जरुरी काम इन सोये हुए युवावों को जगाने कि और इन्हें अपनी शक्ति का अहसास दिलाने की ।

"कोई जागे या न जागे ये उसका मुक्कदर है ,

मेरा फ़र्ज़ है ,आपका फ़र्ज़ है जागते रहिये। "

तो आये दोस्तों और देश को विकशित राष्ट्र बनाने के साथ साथ इन सोये हुए युवावों को जागने के देशव्यापी मुहीम चलाया जाये tabhi हमर देश २०२० तक विकशित राष्ट्र बन सकता और हम अपने डॉ अब्दुल कलाम व् पुरे देश का सपना vision2020 ko पूरा कर सकते है।

जय हिंद, जय भारत