Wednesday, August 1, 2012

देश, हम और हमारी भूमिका

देश, हम और हमारी भूमिका अन्ना ,बाबा रामदेव एवं अरविन्द केजरीवाल और साथ में KIRAN BEDI जो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में है फिर भी हमारे लिए लड़ रहने है. और हम युवा अपने में खोये हुए है. येह तक की हम युवा अपने लक्ष्य के प्रति सचेत नहीं होते है तो देश के लिया क्या सोच सकते है लेकिन एक बुढा शेर सबको सचेत कर रहा है. अब नहीं जागेंगे तो KAB जागेंगे . अब SYSTEM में नहीं आयेंगे तब कब आयेंगे . हमारे देश के AADHE SE ADHIK युवा है येही सबसे सकारात्मक बिंदु है जहा हमलोग अपने देश के तश्वीर बदल सकते है. अब फैश्ला हमलोगों के पाले में है की कैसे हम अपनी भुमिक अददा कर सकते है. ये जिंदगी कितने वर्ष के लिए है ,किसी को नहीं पता लेकिन फिर भी लोग इस कीमती
जिंदगी को समझ नहीं पाते और ऐसे ही इस दुनिया से कुच कर जाते है . आदमी का जीवन भगवान की सबसे सुंदर कृति है. लेकिन आदमी ने इससे सबसे बुरा बना दिया है. भगवान जब भी उप्पर से अपनी इस सुंदर कृति को देखते होंगे तो उनको भी शर्म आती होगी की ये क्या हो गया? मैंने क्या बनाया था और ये क्या हो गया? जहा तक मेरा मानना है, भगवान हरेक आदमी को एक विशेष गुण के साथ भेजा है जिसे उसे यहाँ करना होता है लेकिन वो अपने आपको पहचान नहीं पाता और दुसरो की देखा-देखि कुछ और करने की सोच लेता है। अब इस कथन को मै एक बहुत ही साधारण उदहारण से सिद्ध करने की कोशिश करता हूँ :- एक स्कूल में आप चले जाये और वहा उपस्थित विध्याधियों में से किसी एक से पूछे की तुम्हारा लक्ष्य क्या है ? क्या बोलेगा ये सबको पता है , या तो इंजिनियर , डॉक्टर ,पुलिश ,शिक्षक या जिलाधिकारी आदि बोल सकता है । ऐसा क्यों होता ?क्या वो इस्सी काम के लिए इस दुनिया में आया है, नहीं मेरे दोस्त ये तो सिर्फ अहम् है की मुझे ये बनाना है क्योकि अपने माता-पिता व् दोस्तों से सिर्फ येही बाते सुनी होती है ,इसलिए ये अक्स उसके दिमाग में बैठ गया होता है और अपना लक्ष्य इससे ही बता देता है।उसके माता-पिता की भी येही चाहते है की उसका बच्चा इनमे से ही कूछ बन जाये और पैसा कमा कर घर चलाये। बस हो गयी जिंदगी का काम और वो अपने आपको सफल मान बैठते है और येही प्रक्रिया आने वाले संतति आपनती है और ये दुनिया ऐसे ही चलती रहती है। लेकिन इससे हटकर एक और दुनिया है जहाँ अच्छे लोग को पंहुचा चाहिए वहां सिर्फ बदमाश, धोखेबाज,बेईमान व् धूर्त आदमी ही पहुच पता हैऔर वह लक्ष्य है अपने देश के बागडोर को संभालना मतलब नेता ,मिनिस्टर या प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनाना लेकिन कोई विद्यार्थी नहीं बोलता कि मुझे नेता बनना है या देश कि बागडोर को अपने हाथ में लेकर इसकी सेवा करना है। अपनी धरती माँ को इन भ्रष्ट नेताओं से छुटकारा दिलाना है। मै मानता हु कि वो इंजिनियर या डॉक्टर बनकर भी सेवा कर सकता है लेकिन ये नेता बिना किसी डिग्री के हमारे उप्पर शासन करते है और हमेशा देश को बेचने के फिराक में रहता है। आखिर ऐसा क्यों? अब मै यह पूछना चाहूँगा कि क्या उसे ऐसे ही जिंदगी को बिताने दिया जाये या हमसब बिताये? क्या हमें एक ऐसा वातावरण पैदा नहीं कर सकते जहाँ हरेक को अपने असली शक्तिका अहसाश हो ? क्या इन्हें देश को चलाने की हिम्मत नहीं है? क्या ये इन बिना डिग्री वाले नेताओं से डरते है ? ऐसे बहुत सारे सवाल है जो सुरसा की तरह मुहँ बाए खरी है। अब इन सारे सवालो का जवाब हां है तो मै अपना लिखना येही बंद कर दूंगा और आगे एक शब्द भी नहीं बोलूँगा नहीं तो मुझे भी ये नेता लोग युवा को भरकाने के जुर्म में जेल में बंद कर देंगे और हम कहा चले जायेंगे किसी को कुछ नहीं पता चलेगा। इशलिये मुझे माफ़ किगियेगा और इससे येही पढ़कर भूल जायेगा। "सपने वो नहीं जो सोने के बाद दिखाई दे, सपने तो वो है जो सोने नहीं दे." हमारे देश में लगभग ५६ करोड़ से भी अधिक युवा है लेकिन अधिकतर जवानी में ही बूढ़े हो चुके है तो फिर हमारा देश कैसे विकशित राष्ट्र बन सकता है । अभी सबसे जरुरी काम इन सोये हुए युवावों को जगाने कि और इन्हें अपनी शक्ति का अहसास दिलाने की । "कोई जागे या न जागे ये उसका मुक्कदर है , मेरा फ़र्ज़ है ,आपका फ़र्ज़ है जागते रहिये। "