Thursday, April 16, 2015

Madhubani Ashram:an example of buried the pure Indian Skilled into the earth



Figure 1मधुबनी आश्रम का प्रवेश द्वार

  “नीरपुर निलहा कोठी के अँगरेज़ मधुबनी गाँव के गरीब किसान मजदूरों पर बहुत जुल्म ढाते थे.महत्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर ग्रामीणों ने संगठित होकर तिनकठिया प्रथा तथा मनमानी लगन के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू की तो तत्कालीन कलक्टर ने इस आन्दोलन को कुचलने की भरपूर कोशिश की.17 जनवरी 1918 ई. को चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने इस गाँव में आकर किसानों पर किया गए अत्याचार की जाँच खुद की थी.” वहाँ स्थित शिलालेख पर लिखा ये वाक्य इस जगह की ऐतिहासिक महता को प्रदर्शित कर रहा है.लेकिन आज ये गाँव एक अवशेष मात्र बनकर रह गया है.आश्रम के अन्दर पहुँचते ही अपनों की उपेक्षा और राजनीतीज्ञयों की कुटिलता परिलक्षित होती है.  

Figure 2आश्रम स्थित जर्जर विनोबा भावे भवन
इस गाँव में गांधीजी चंपारण सत्यग्रह के दौरान जाँच हेतु आये थे लेकिन इस गाँव से एक अलग तरह का सम्बन्ध जुड़ गया था.इसलिए 1934 ई. के भूकंप से पीड़ित किसानों ,मजदूरों के राहत हेतु महात्मा गाँधी ने मधुबनी गाँव अपने अनुयायी मथुरादास पुरुषोत्तम को रिलीफ बाँटने के लिए भेजे.मथुरादास यहाँ आकर रिलीफ देने के साथ सूत कांटने का कार्य करने लगे जिससे लोगों को मजदूरी का एक माध्यम बन गया. गाँव के लोग भी सहयोग करने लगे 

Figure 3धोबी घाट जहा कपड़ो की धुलाई एवं रंगाई होती थी
जिसमे दीपलाल सिंह एवं शिवनंदन सिंह के सहयोग से जमीं खरीदकर माकन बनवाने लगे.शिवनंदन सिंह का काफी सहयोग प्राप्त हुआ जिससे काम-धंधा बढ़ने लगा जिसमे सूत काटना,बुनाई करना, कोल्हू से तेल पड़ना ,कपडा धोना,रंगाई, छपाई का काम भी बढ़ गया. खपड़ा बनान,मवेशी के मर जाने के बाद उसके हड्डी से खाद बनाना, कस्तूरबा ट्रस्ट से बालवारी चलने लगा जिससे बच्चों को शिक्षा दिया जाने लगा.आश्रम में गौशाला भी था जहा 25 गाये और 2 सांड भी था .बच्चे और वहा के लोगों को दुध की सरल उपलब्धता थी और तरह तरह के उत्पाद बनाये जाते थे.उनी का काम भी होता था म कम्बल बुना जाने लगा , रेशमी चादर, शाल की बुनाई होती थी साथ में कटिया,तसर,मूंगा का सूत कटना और बुनाई करना प्रकाष्ठ पर पहुँच गया था. अविश्वसनीय 5000 सूतकार और 200 बुनकर ,100 बड़ई,100 दैनिक मजदूर,50 रंगाई-धुलाई का काम करने वाला और 10 दैनिक कामगार गौशाला में थे.भारतीय समाज का एक ऐसा तस्वीर जो आज देश के विकास के लिए मिल का पत्थर सवित हो सकता है.ये सारे काम गाँव में होता था जहा से हरेक घर से चरखो का आवाज़ गूंजती थी.जमीं लेकर मकान बना और अपने जमीं में ये कारोबार बृहत् पैमाने पर होने लगा. आश्रम के पास 17 एकड़ जमीं है जिसमे बांस,शीशम,आम,लीची,केला,पिता,निम्बू का पेड़ रहता था और कुछ खेती भी होने लगा.अब यह जगह आश्रम बना गया जिसे देखने के लिए बहार से लोग देखने आने लगे लेकिन आज क्या से क्या हो गया ,स्वार्थ के राह में....
Figure 4जर्जर आश्रम के भवन
Figure 5जंगल में तब्दील मधुबनी आश्रम का प्रांगन
खादी ग्रामोद्योग संघ , मधुबनी आश्रम ,गांधीजी की विचारों का एक जीता जगता चिता जो गांधीवादियों एवं समाज के ठेकेदारों द्वारा तैयार किया गया है. वही मधुबनी आश्रम, जो आज से 10 साल पहले हजारों लोगों को रोजगार मुहैया कराता था और देश के कोने-कोने में शुद्ध गाँधी उत्पाद को पहुँचाया जाता था. यहाँ का रेशम का कपडा बहुत प्रसिद्ध था जो लोगों में काफी पसंद किया जाता था.यह वही मधुबनी आश्रम है जिसके उत्पाद से गुजरात के खादी भंडार में कपड़ो की काफी उपलब्धता रहती थी और चंपारण को जाना जाता था. सिर्फ गांधीजी की जन्मभूमि ही नहीं बल्कि देश और भागों में भी आश्रम के उत्पाद से चंपारण को जाना जाता था.यह वही आश्रम है जो स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराकर उसकी रोजी रोटी चलाता था.लेकिन आज यह एक अवशेष मात्र रह गया है.गांधीवादियों से पूछने पर वे इसकी महिमा तो गाते है लेकिन देखने तहाद तक नहीं जाना पसंद करते.




Wednesday, April 15, 2015

Buried the contructive works of Gandhiji in Madhubani Ashram (मधुबनी आश्रम),East Champaran,Bihar.





मधुबनी आश्रम के मंत्री निवास के सामने शराब की बोतले
मधुबनी आश्रम जो हमारे सुखद एवं खुशहाल भारत की तस्वीर थी और गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन का सबसे अच्छे उदाहरणों में से एक था लेकिन आज ये अपने जर्जर अस्तित्व पर रोने को मजबूर है.रोने के लिए मजबूर उसके लाभ उठाने वालों ने ही कर दिया है.खादी ग्रामोद्योग संघ को अपने रेशमी कपड़ो एवं अन्य उत्पादों को देने वाला संस्थान का अस्तित्व मिट गया लेकिन आज ये कथित गांधीवादी बर्बादी का जश्न मनाने के लिए खर्च करने के लिए तयारी कर रहे है लेकिन ये इसके जीर्णोद्धार हेतु चर्चा करना भी उचित नहीं समझते.ये कथित गांधीवादी जो घर से बाहर निकलते समय खादी कपडा और टोपी पहनना नहीं भूलते लेकिन गांधीजी के एक रचनातमक कार्य को कर सके, हो नहीं सकता.इनकी मानसिकता गांधीजी के नाम पर मीडिया में आना और अपनी वाह-वही लूटना होता है ,गांधीजी का करी नही करना खैर सबको हक़ है अपने हिंस्से के भारत माँ को लूटने का.     
   आज मैं और आप ही नहीं बल्कि पूरा विश्व गांधीजी के आदर्शो को अपना रहे है.जहाँ भारत के
प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत मिसन को हरी झंडी दिखाते है तो वही UNO उनके जन्मदिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाने हेतु घोषित करती है लेकिन ये कथित गांधीवादी लोग भारत के चंपारण में आदर्शो की चिता बनाकर आग लगाने की तैयारी में है.
मधुबनी आश्रम में व्याप्त गंदगी

ये है मधुबनी गाँधी आश्रम में भेका हुआ बियर/शराब की बोतले जो मंत्री-निवास के सामने अपनी कहानी कह रही है. खादी ग्रामोद्योग में मंत्री को गांधीजी के नाम पर वेतन मिलता है लेकिन ये उस वेतन का प्रयोग गाँधी के विचारो को दफ़न कर शराब व् नशा का सेवन कर रहे है. साफ-सफाई क्या होता है ? ये गांधीवादी एवं खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारी तो भूल ही गए है.
ये मैं सिर्फ नकारात्मक पहलु बता कर छोडना नहीं चाहता बल्कि इसके कारन एवं निराकरण हेतु समीक्षा भी करना चाहते है.इस दुर्दशा के पीछे आज की इन गांधीवादियों को देना चाहता हूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन पार्ट 2 की आवश्यकता है जो आज अपनों से ही लड़ना है.

Champaran Satyagrah: Various aspect of this revolution for changing



चंपारण सत्याग्रह के विविन्न पहलु:
बिहार का चंपारण 1917 ई. में सत्याग्रह का पहला स्थल है.चंपारण का नाम आज गांधीजी के सत्याग्रह के परिप्रेक्ष्य में जाना जाता है लेकिन उससे पहले चंपारण को कोई नहीं जनता था.चंपारण में गांधीजी का आगमन चंपारण के लिए भी और गांधीजी के लिए भी एक मिल का पत्थर साबित हुआ . चंपारण सत्याग्रह जहां देश की आजादी के लिए एक रास्ता बनाया वही गांधीजी को अहिंसा रूपी हथियार मिला जो अंग्रेजो के लिए खतरनाक साबित हुआ.
आगमन की पृष्ठभूमि: चंपारण में भूमिपतियों द्वारा किसानों का निर्मम शोषण एवं नील के खेती हेतु बाध्य करना और इसके विरुद्ध जनाक्रोश ,एक सबसे बड़ा कारण है ,गांधीजी का चंपारण आगमन का. अंग्रेजो ने चम्पारण के एक लाख एकड़ से भी अधिक उपजाऊ भूमि पर कब्जा कर लिया था और उनपर अपनी कोठियां स्थापित कर ली थी। आज भी ये कोठियां अग्रेजों की अत्याचार का कहानी कह रही है. ये लोग खुरकी कोतवाली और तीनकठिया व्यवस्था के द्वारा किसानों पर तरह-तरह के जुल्म बरपाते और उनका शोषण करते थे। खुरकी व्यवस्था के तहत अंग्रेज रैयतों को कुछ रुपये देकर उनकी कुल जमीन, घर उत्यादि जरपेशगी रखकर उसपर उन्हीं से जीवन भर नील की खेती कराते थे। इसी प्रकार तीनकठिया व्यवस्था के तहत किसानों को अपने खेत के प्रत्येक बीघा के तीन कठ्ठे के उपर नील की खेती करनी पड़ती थी। इसमें खर्च रैयतों का होता था और बिना मुआवजा दिये नील अंग्रेज ले जाते थे। इतना ही नहीं अनेक तरह के टैक्स उनसे वसूला जाता था।
    ये एक तरह से दिल को दहला देने वाला दृश्य था जिसमे कुछ किसान नेताओं को आगे आने हेतु मजबूर किया. इन्ही किसानों में राजकुमार शुक्ल पर दुःख का पहाड़ टुटा था जिन्होंने गांधीजी को चंपारण बुलाने हेतु लखनऊ,कानपूर व् कोलकाता तक पीछा नहीं छोड़ा, अंततः शुक्ल ने गांधीजी को चंपारण आने हेतु राजी करवा लिए और कोलकाता से सीधे चंपारण के लिए रवाना हुए.
चंपारण आगमन एवं सत्याग्रह :- गांधीजी जी चंपारण में मुजफ्फरपुर से होते हुए 15 अप्रैल 1917 को पहुंचे और उसके बाद शुरू हुआ किसानों पर हुए अत्याचार का अवलोकन लेकिन आगमन के दुसरे दिन ही पुलिस सुपरीटेंडेंट का क़ानूनी नोटिस मिला ,चंपारण छोड़कर चले जाने की.लेकिन गांधीजी ने बड़े ही विनम्रता से क़ानूनी नोटिस को स्वीकार कर अपनी आगे की कार्य को चंपारण के मित्रोँ की सहयता से करते रहे.”सरकारी कानून के अनुसार मुझपर मुकदमा चलाया जानेवाला था.पर सच पूछा जाये तो मुकदमा सरकार के विरुद्ध था.कमिशनर ने मेरे विरुद्ध जो जाल बिछाया था ,उसमे उसने सरकार को ही फंसा दिया. ”-गांधीजी.

  गांधीजी ने निलहों के अत्याचार से निज़ात दिलाने के लिए किसानों से स्वं मिलते, पैदल ही विबिन्न इलाकों में जाकर खुली जांच करना सामिल है.मोतिहारी एवं बेतिया में हजारों किसानों का आना और अपना वक्तव्य लिखवाना  और किसानों के लिए गए बयानों के आधार पर सरकार को देने के लिए रिपोर्ट तैयार किया गया.गवर्नर को रिपोर्ट सौपने के बाद गांधीजी को सरकार द्वारा जाँच कमिटी में गैर-सरकारी सदस्य के रूप में नामित करना , कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण सफलता थी.जाँच समिति की रिपोर्ट की सरकारी स्वीकृति एवं विधानसभा द्वारा चंपारण कृषि संबंद्ध अधिनियम पास करके रैयतो को राहत सम्बन्धी व्यव्स्था लागु किया गया.इस तरह से बिना किसी हिंसा के एक बहुत बड़े जंग को जीत लिया गया जो भारतीय इतिहास की एक कालजयी तारीख के रूप में शुमार है.
सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान विविन्न रचनात्मक कार्यक्रम:- सत्याग्रह आन्दोलन ने चंपारण को राष्ट्रीय स्तर पर ला दिया. ऐसे तो गांधीजी चंपारण में किसानों की समस्या को लेकर आये थे और जब आकर देखा तो समस्या सिर्फ कृषि का ही नहीं बल्कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य का भी विकट था. आन्दोलन के दौरान कार्यकर्ताओं का एक दल तैयार हुआ जो आन्दोलन में अपने स्तर से सहभागिता निभा रहे थे.
·         गांधीजी ने उनके लिए व्यवहार, पहनावा,पोशाक, खान-पान,रहन-सहन आदि के सम्बन्ध में नियम निर्धारित करते थे और खुद पालन करते हुए करवाते थे.
·         जाट-पात का विरोध ,सह्भोजन एवं स्वालंबन हेतु कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना
·         चंपारण की जनता की मूल समस्या अंग्रेजो ,कोठीवालों और जमींदारों से दर था जिसके लिए किसानों का उनके सामने बयान लेकर निर्भीक बनाना.
·          बच्चों , नौजवानों को रोजगारपरक शिक्षा देने हेतु बुनियादी विद्यालय खोलना.पहला बुनियादी विद्यालय बरहरवा लखनसेन में खुला और उसके बाद मधुबन,तुरकौलिया,भितिहरवा में खुला.भितिहरवा में जहा गांधीजी स्वं संचालन कर रहे थे वही कस्तूरबा गाँधी बरहरवा में.
·          गांवों में खासकर विद्यालय वाले स्वं पडोसी गाँव में स्वच्छता हेतु जागृति पैदा करना,सहयोग से रास्ता बनाना, सफाई करना,खुले में शौच ण करने हेतु लोगों को जागरूक करना.
·         स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता हेतु मुंबई से चिकित्सकों के दल को गांवों में व्यव्स्था करवाना.
·         गांधी ने अपने चंपारण प्रवास के दौरान कुष्ठ रोगियों की बहुत सेवा की
·         स्‍वयंसेवकों ने मैला ढोने, धुलाई, झाडू-बुहारू तक का काम किया

महीनों अहिंसात्मक तरीके से संचालित सारे कार्यो का रिपोर्ट बनाकर सरकार को सूचित करते रहना और स्थानीय लोगों प्रशिक्षित करते रहना जिससे इन रचनात्मक कार्यों को आगे भी जारी रखा जा सके. गांधीजी ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि-चम्‍पारण का यह दिन मेरी जिन्‍दगी में ऐसा था
जो कभी भुलाया नहीं जा सकता, जहां मैंने ईश्‍वर का, अहिंसा का और सत्‍य का साक्षात्‍कार किया।
समीक्षा:- चंपारण सत्याग्रह के पुरे घटनाक्रम को देखने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि गांधीजी ने जो क्रियाबिधि अपनाई और जनता ने जो सहयोग किया वह राष्ट्रिय आन्दोलन की अमूल्य निधि है. चंपारण सत्याग्रह के आधार पर भारत की विविन्न समस्यायों को सुलझाया जा सकता है.इसलिए चंपारण सत्याग्रह का भारतीय स्वतंत्रता संग्रह के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है.एक लघु स्तर पर सफल आन्दोलन को जब राष्ट्रिय स्तर पर कई सालों तक अनुकृति की गयी जिसके परिणाम स्वरूप भारत स्वतंत्र हुआ और भारत की नवनिर्माण की प्रक्रिया शुरु हुयी.