मधुबनी आश्रम जो हमारे सुखद एवं खुशहाल भारत की तस्वीर थी
और गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन का सबसे अच्छे उदाहरणों में से एक था
लेकिन आज ये अपने जर्जर अस्तित्व पर रोने को मजबूर है.रोने के लिए मजबूर उसके लाभ
उठाने वालों ने ही कर दिया है.खादी ग्रामोद्योग संघ को अपने रेशमी कपड़ो एवं अन्य
उत्पादों को देने वाला संस्थान का अस्तित्व मिट गया लेकिन आज ये कथित गांधीवादी बर्बादी
का जश्न मनाने के लिए खर्च करने के लिए तयारी कर रहे है लेकिन ये इसके जीर्णोद्धार
हेतु चर्चा करना भी उचित नहीं समझते.ये कथित गांधीवादी जो घर से बाहर निकलते समय
खादी कपडा और टोपी पहनना नहीं भूलते लेकिन गांधीजी के एक रचनातमक कार्य को कर सके,
हो नहीं सकता.इनकी मानसिकता गांधीजी के नाम पर मीडिया में आना और अपनी वाह-वही
लूटना होता है ,गांधीजी का करी नही करना खैर सबको हक़ है अपने हिंस्से के भारत माँ
को लूटने का.
आज मैं और आप ही
नहीं बल्कि पूरा विश्व गांधीजी के आदर्शो को अपना रहे है.जहाँ भारत के
मधुबनी आश्रम में व्याप्त गंदगी |
ये है मधुबनी गाँधी आश्रम में भेका हुआ बियर/शराब की बोतले
जो मंत्री-निवास के सामने अपनी कहानी कह रही है. खादी ग्रामोद्योग में मंत्री को
गांधीजी के नाम पर वेतन मिलता है लेकिन ये उस वेतन का प्रयोग गाँधी के विचारो को
दफ़न कर शराब व् नशा का सेवन कर रहे है. साफ-सफाई क्या होता है ? ये गांधीवादी एवं
खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारी तो भूल ही गए है.
ये मैं सिर्फ नकारात्मक पहलु बता कर छोडना नहीं चाहता बल्कि
इसके कारन एवं निराकरण हेतु समीक्षा भी करना चाहते है.इस दुर्दशा के पीछे आज की इन
गांधीवादियों को देना चाहता हूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन
पार्ट 2 की आवश्यकता है जो आज अपनों से ही लड़ना है.
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