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Figure 1मधुबनी आश्रम का
प्रवेश द्वार |
“नीरपुर निलहा कोठी के अँगरेज़ मधुबनी
गाँव के गरीब किसान मजदूरों पर बहुत जुल्म ढाते थे.महत्मा गाँधी के विचारों से
प्रभावित होकर ग्रामीणों ने संगठित होकर तिनकठिया प्रथा तथा मनमानी लगन के खिलाफ
आवाज़ उठानी शुरू की तो तत्कालीन कलक्टर ने इस आन्दोलन को कुचलने की भरपूर कोशिश
की.17 जनवरी 1918 ई. को चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने इस
गाँव में आकर किसानों पर किया गए अत्याचार की जाँच खुद की थी.” वहाँ स्थित शिलालेख
पर लिखा ये वाक्य इस जगह की ऐतिहासिक महता को प्रदर्शित कर रहा है.लेकिन आज ये
गाँव एक अवशेष मात्र बनकर रह गया है.आश्रम के अन्दर पहुँचते ही अपनों की उपेक्षा
और राजनीतीज्ञयों की कुटिलता परिलक्षित होती है.
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Figure 2आश्रम स्थित जर्जर विनोबा भावे भवन |
इस गाँव में गांधीजी चंपारण सत्यग्रह के दौरान जाँच हेतु आये थे लेकिन इस गाँव
से एक अलग तरह का सम्बन्ध जुड़ गया था.इसलिए 1934 ई. के भूकंप से पीड़ित किसानों
,मजदूरों के राहत हेतु महात्मा गाँधी ने मधुबनी गाँव अपने अनुयायी मथुरादास
पुरुषोत्तम को रिलीफ बाँटने के लिए भेजे.मथुरादास यहाँ आकर रिलीफ देने के साथ सूत
कांटने का कार्य करने लगे जिससे लोगों को मजदूरी का एक माध्यम बन गया. गाँव के लोग
भी सहयोग करने लगे
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Figure 3धोबी घाट जहा कपड़ो की धुलाई एवं रंगाई होती थी |
जिसमे दीपलाल सिंह एवं
शिवनंदन सिंह के सहयोग से जमीं खरीदकर माकन बनवाने लगे.शिवनंदन सिंह का काफी सहयोग
प्राप्त हुआ जिससे काम-धंधा बढ़ने लगा जिसमे सूत काटना,बुनाई करना, कोल्हू से तेल
पड़ना ,कपडा धोना,रंगाई, छपाई का काम भी बढ़ गया. खपड़ा बनान,मवेशी के मर जाने के बाद
उसके हड्डी से खाद बनाना, कस्तूरबा ट्रस्ट से बालवारी चलने लगा जिससे बच्चों को
शिक्षा दिया जाने लगा.आश्रम में गौशाला भी था जहा 25 गाये और 2 सांड भी था .बच्चे
और वहा के लोगों को दुध की सरल उपलब्धता थी और तरह तरह के उत्पाद बनाये जाते
थे.उनी का काम भी होता था म कम्बल बुना जाने लगा , रेशमी चादर, शाल की बुनाई होती
थी साथ में कटिया,तसर,मूंगा का सूत कटना और बुनाई करना प्रकाष्ठ पर पहुँच गया था.
अविश्वसनीय 5000 सूतकार और 200 बुनकर ,100 बड़ई,100 दैनिक मजदूर,50 रंगाई-धुलाई का
काम करने वाला और 10 दैनिक कामगार गौशाला में थे.भारतीय समाज का एक ऐसा तस्वीर जो
आज देश के विकास के लिए मिल का पत्थर सवित हो सकता है.ये सारे काम गाँव में होता
था जहा से हरेक घर से चरखो का आवाज़ गूंजती थी.जमीं लेकर मकान बना और अपने जमीं में
ये कारोबार बृहत् पैमाने पर होने लगा. आश्रम के पास 17 एकड़ जमीं है जिसमे
बांस,शीशम,आम,लीची,केला,पिता,निम्बू का पेड़ रहता था और कुछ खेती भी होने लगा.अब यह
जगह आश्रम बना गया जिसे देखने के लिए बहार से लोग देखने आने लगे लेकिन आज क्या से
क्या हो गया ,स्वार्थ के राह में....
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Figure 4जर्जर आश्रम के भवन |
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Figure 5जंगल में तब्दील
मधुबनी आश्रम का प्रांगन |
खादी ग्रामोद्योग संघ ,
मधुबनी आश्रम ,गांधीजी की विचारों का एक जीता जगता चिता जो गांधीवादियों एवं समाज
के ठेकेदारों द्वारा तैयार किया गया है. वही मधुबनी आश्रम, जो आज से 10 साल पहले
हजारों लोगों को रोजगार मुहैया कराता था और देश के कोने-कोने में शुद्ध गाँधी
उत्पाद को पहुँचाया जाता था. यहाँ का रेशम का कपडा बहुत प्रसिद्ध था जो लोगों में
काफी पसंद किया जाता था.यह वही मधुबनी आश्रम है जिसके उत्पाद से गुजरात के खादी
भंडार में कपड़ो की काफी उपलब्धता रहती थी और चंपारण को जाना जाता था. सिर्फ
गांधीजी की जन्मभूमि ही नहीं बल्कि देश और भागों में भी आश्रम के उत्पाद से चंपारण
को जाना जाता था.यह वही आश्रम है जो स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराकर उसकी
रोजी रोटी चलाता था.लेकिन आज यह एक अवशेष मात्र रह गया है.गांधीवादियों से पूछने
पर वे इसकी महिमा तो गाते है लेकिन देखने तहाद तक नहीं जाना पसंद करते.